न जाने तुझे इतना क्यों चाहता हूँ ,
तेरी कुलफतो मे गुमसुम-सा रहता हूँ ।
उन लम्हो की मधुर स्मृति से,
एक सुन्दर तस्वीर बनाता हूँ ।
इतना क्यों चाहता हूँ । ।1।
तेरी आँखों मे जंगल है,
मै जहां राह भूल जाता हूँ ।
है तू सोम-सी तेरे आने का,
मै चकोर-सा इंतजार करता हूँ ।
इतना क्यों चाहता हूँ । ।2।
मै खुद को माहिर तैराक समझता हूँ,
मगर तेरी यादों के सागर मे डूब जाता हूँ ।
होता बेचैन-सा जब दिल मेरा,
तेरी यादों के गीत गुनगुनाता हूँ ।
इतना क्यों चाहता हूँ । ।3।
तुझे देखने को जब दिल मेरा इसरार करता है,
मै उसे कल्प दर्पण पर तेरी तस्वीर दिखाता हूँ ।
ना समझ है ये दिल अरुण मगर,
मै उसे मास्टर गणित- सा समझाता हूँ ।
इतना क्यों चाहता हूँ । ।4।
अरुण पाल -अमेठी