रामधारीसिंह 'दिनकर' जीवन परिचय हिन्दी - हिन्दी Inclinde

Friday, July 24, 2020

रामधारीसिंह 'दिनकर' जीवन परिचय हिन्दी

रामधारीसिंह 'दिनकर'

जीवन परिचय- शुक्ल-युग के श्रेष्ठ निबन्धकार श्री रामधारीसिंह 'दिनकर' का जन्म
सन् 1908 ई० में बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक ग्राम में एक साधारण कृषक परिवार
में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री रवि सिंह तथा माता का नाम श्रीमती मनरूप देवी था।
इनकी अल्पायु में ही इनके पिता का देहान्त हो गया था। इन्होंने पटना विश्व विद्यालय से
बी०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। लेकिन पारिवारिक कारणों से आगे नहीं पढ़ सके। नौकरी में
लग गए। कुछ समय तक इन्होंने माध्यमिक विद्यालय मोकमा घाट में प्रधानाचार्य के पद
पर कार्य किया। सन् 1934 ई० में बिहार
के सरकारी विभाग में सब रजिस्ट्रार की नौकरी की। इसके पश्चात् दिनकर | जी प्रसार विभाग
में उपनिदेशक के पद पर स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद तक
कार्य करते रहे। सन् 1950 ई० में इन्हें मुजफ्फरपुर के स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिन्दी
विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। सन् 1952 ई० में राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए।
इसके पश्चात् ये भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति, भारत सरकार के गृह विभाग में हिन्दी
सलाहकार और आकाशवाणी के निदेशक के रूप में कार्य किया। सन् 1962 में भागलपुर
विश्वविद्यालय ने इन्हें डी० लिट की मानद उपाधि प्रदान की। सन् 1972 ई० में इनकी
काव्य-रचना 'उर्वशी' पर इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हिन्दी-साहित्य
का यह महान् साहित्यकार 24 अप्रैल सन् 1974 ई० को हमेशा के लिए हमें त्यागकर ब्रह्मतत्व में
विलीन हो गया।
कृतियाँ या रचनाएँ- कवि दिनकर की गद्य-पद्य रचनाओं का विवरण निम्नलिखित है
(1) दर्शन एवं संस्कृति- 'धर्म', 'भारतीय संस्कृति की एकता', 'संस्कृति के चार अध्याय'।
(2) निबन्ध संग्रह- 'अर्द्धनारीश्वर', 'वट-पीपल', 'उजली आग', 'मिट्टी की ओर' 'रेती के फूल' आदि।
(3) आलोचना ग्रन्थ- शुद्ध कविता की खोज! 
(4) यात्रा साहित्य- 'देश-विदेश'।
 (5) बाल-साहित्य- 'मिर्च का मजा', 'सूरज का ब्याह' आदि।
(6) काव्य ग्रन्थ- 'रेणुका', 'हुंकार', 'रसवन्ती', 'कुरुक्षेत्र', 'सामधेनी', 'प्रण-भंग' (प्रथम-काव्य रचना)
'उर्वशी' (महाकाव्य), 'रश्मिरथी' (खण्डकाव्य) परशुराम की प्रतीक्षा (खण्डकाव्य) आदि।

साहित्य में स्थान- शुक्ल युग में क्रान्ति बिगुल बजाने वाले साहित्यकार एवं कवि
श्रीरामधारी सिंह 'दिनकर' श्रेष्ठ चिन्तक, आलोचक, निबन्धकार और कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं
लेकिन राष्ट्रीय भावनाओं से संचालित इनकी कृतियाँ हिन्दी-साहित्य की अमूल्य निधि हैं, जो
इन्हें हिन्दी साहित्याकाश का दिनकर सिद्ध करती हैं।

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