जो कभी दूर से पहचान लिया करती थी|
अभिनय उसने इसकदर किया अजनबी होने का ,
जो कभी कदमे आहट से पहचान लिया करती थी |
जो कभी बसंत के फूल सी खिला करती थी |
अब देखकर वो मुझे जैसे रूठ सी जाती है ,
जो कभी देखकर मुस्कुरा दिया करती थी |
सहसा वो कहती है बन्धिसे तमाम है , माना अरुण
जो कभी उन्ही बन्धिसो से समय निकाल लिया करती थी |
मै सोचता हू वो इतनी जल्दी भूल कैसे सकती है ,
मुझे जो कभी मेरे गजले दीदार किया करती थी |
अरुण पाल - अमेठी