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Monday, August 17, 2020

एक स्वप्न

 एक स्वप्न



सहसा स्वप्न में मेरे ,
एक हसीन सा चेहरा आया। 
कुछ पल ठहरा सामने मेरे ,
देखकर मुस्कुराया फिर सरमाया। 

पुष्प कली सी उसके अधर ,
चंचल नयन भटकती इधर -उधर। 
उसके चेहरे का मनमोहक निखार ,
सुर्ख लाली से अलंकृत रुखसार। 

मंद सुगंधित बयार सी आयी ,
उसने लम्ब केश लहरायी।
जैसे कोई परी हो आयी ,
कुछ बोली फिर मुस्कायी।

धारण किये सुंदर लिबास ,
गीत गुनगुनाई आकर मेरे पास। 
कोयल सी मधुर उसकी बोल ,
मानो वो सुंदरी अनमोल।  

दिल  ए  हसरत  है एक  खास ,
 अपनेपन का  हो अहसास।
ए खुदा सदा दे मेरा साथ ,
सपना देखा था उस रात।
     अरुण पाल 



मै हुआ मैट्रिक पास प्रिये।

मै हुआ मैट्रिक पास प्रिये।

 तुम मैट्रिक की अध्येता हो , मै हुआ मैट्रिक पास प्रिये। 

तुम हो दिल की धड़कन सी , मै हर पल चलती श्वास प्रिये। 


तुम खूबसूरत शहर में पली- बढ़ी ,मै  पला  गांव की गलियों में | 

तुम हरित पुष्प सी कोमल हो, मै भ्रमर पुष्प की कलियों में। 

तुम सुंदर पुष्प हो फुलवारी की , मै तो पुष्प प्लास प्रिये। 

तुम मैट्रिक की अध्येता हो, मै हुआ मैट्रिक पास प्रिये। 


कैसे बतलाऊ मै तुझको ,चाहत कितनी है तेरे प्रति। 

जैसे संबंधित गणित में , है महज त्रिकोणमिति। 

तुम sinθ  जैसी हो , मै तो θ cos प्रिये। 

तुम मैट्रिक की अध्येता हो, मै  हुआ मैट्रिक पास प्रिये। 


तुम मधुर गीत की गायन सी हो, मै थ्योरी रसायन हूँ। 

तुम तुलसीदास की रामचरित ,मै  वाल्मीकि रामायण हूँ। 

मुस्कान सदा तेरे चेहरे पर, मै रहता बिंदास प्रिये। 

तुम मैट्रिक की अध्येता हो, मै हुआ मैट्रिक पास प्रिये।


तुम नई करेंसी सी लगती , मै तो महज सिक्का- सा दिखता।

तुम गजब प्रश्न भावात्मक हो , जिसकी नहीं कोई प्रायिकता। 

तुम करेंट अफेयर सी लगती , मै तो पूरा इतिहास प्रिये। 

तुम मैट्रिक की अध्येता हो, मै हुआ मैट्रिक पास प्रिये। 


तुम सहज प्रश्न सी लगती हो ,मै  एक जटिल equation  हूँ। 

तुम चाँद शब्द की definition ,मै भौतिकी derivation हूँ। 

माना तुम एक चमक दर्पण की , मै तो हूँ  प्रकाश प्रिये।

तुम मैट्रिक की अध्येता हो , मै हुआ मैट्रिक पास प्रिये।

              

                       अरुण पाल 


                          


Friday, July 24, 2020

गोस्वामी तुलसीदास जीवन परिचय हिन्दी

गोस्वामी तुलसीदास

 जीवन परिचय- गोस्वामी तुलसीदास का जन्म सन् 1532 ई० में, - और मृत्यु सन्० 1589 वि०
भाद्रपद, शुक्लपक्ष की एकादशी में बाँदा जिले के - राजापुर नामक ग्राम में हुआ था। कुछ
विद्वान इनका जन्म एटा जिले के............
'सोरो' ग्राम में मानते हैं। परन्तु आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने राजापुर ग्राम का ही समर्थन किया है।
तुलसीदास सरयूपारी ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम श्री
आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था। इनके माता-पिता ने इन्हें
अभुक्त मूल नक्षत्र में उत्पन्न होने के कारण इनको त्याग दिया था। इनका - बचपन अनेक
कष्टों से व्यतीत हुआ। सौभाग्य से इनको बाबा नरहरिदास जैसे
महान गुरु का आशीर्वाद  प्राप्त हुआ। इन्हीं की कृपा से इनको शास्त्रों के अध्ययन-करने का
अवसर मिला। स्वामी नरहरिदास के साथ ही ये काशी आ गये, जहाँ परम महान महात्मा शेष
सनातन जी ने इन्हें वेद-वेदांग, दर्शन, इतिहास, पुराण आदि में योग्य व निपुण कर दिया।
 इन्हें अपनी अत्यन्त रूपवती पत्नी से अत्यधिक प्रेम था। एक बार पत्नी द्वारा बिना
कहे मायके चले जाने पर ये अर्द्धरात्रि में आँधी-तूफान से लड़ते हुए अपनी ससुराल जा पहुँचे।
इस पर इनकी पत्नी ने इनकी भर्त्सना 'रत्नावली-दोहावली' में की-
अस्थि चर्म मय देह मम, तामें ऐसी प्रीति।
तैसी जो श्रीराम महँ, होति न तौ भवभीति। इन्होंने अपनी अधिकांश रचनाएँ चित्रकूट, काशी
और अयोध्या में लिखी है। काशी के असी घाट पर सन् 1623 ई० और श्रावण मास, की शुक्ल
पक्ष की कृष्णा तीज को वि० सं० 1680 में इन्होंने देह त्याग किया। इनकी मृत्यु के बारे में प्रसिद्ध है
संवत सोलह सौ असी, असी गंग के तीर।
श्रावण कृष्णा तीज शनि, तुलसी तज्यो शरीर।। 
कृतियाँ/रचना- गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित बारह ग्रन्थ प्रामाणिक माने जाते हैं, 
जिनमें महाकाव्य 'श्रीरामचरितमानस' प्रमुख है। शेष निम्नलिखित हैं
(1) श्रीरामचरितमानस, (2) विनय पत्रिका, (३) कवितावली, (4) गीतावली, (5) श्रीकृष्ण-गीतावली,
(6) बरवै रामायण, (7) रामलला नहछ, (8) वैराग्य संदीपनी, (9) जानकी-मंगल, (10) पार्वती-मंगल,
(11) दोहावली, (12) रामाज्ञा प्रश्न।

साहित्य में स्थान- गोस्वामी तुलसीदास भक्तिकाल के ही नहीं बल्कि हिन्दी-साहित्य के
सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। इन्होंने ब्रज और अवधी भाषा द्वारा कविता की सर्वतोन्मुखी उन्नति की।
इन्होंने अपने काव्य के द्वारा अनेक मतों और विचारधाराओं में सामान्  स्थापित करके समाज में पुनर्जागरण का मन्त्र फूंका। 

रामधारीसिंह 'दिनकर' जीवन परिचय हिन्दी

रामधारीसिंह 'दिनकर'

जीवन परिचय- शुक्ल-युग के श्रेष्ठ निबन्धकार श्री रामधारीसिंह 'दिनकर' का जन्म
सन् 1908 ई० में बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक ग्राम में एक साधारण कृषक परिवार
में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री रवि सिंह तथा माता का नाम श्रीमती मनरूप देवी था।
इनकी अल्पायु में ही इनके पिता का देहान्त हो गया था। इन्होंने पटना विश्व विद्यालय से
बी०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। लेकिन पारिवारिक कारणों से आगे नहीं पढ़ सके। नौकरी में
लग गए। कुछ समय तक इन्होंने माध्यमिक विद्यालय मोकमा घाट में प्रधानाचार्य के पद
पर कार्य किया। सन् 1934 ई० में बिहार
के सरकारी विभाग में सब रजिस्ट्रार की नौकरी की। इसके पश्चात् दिनकर | जी प्रसार विभाग
में उपनिदेशक के पद पर स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद तक
कार्य करते रहे। सन् 1950 ई० में इन्हें मुजफ्फरपुर के स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिन्दी
विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। सन् 1952 ई० में राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए।
इसके पश्चात् ये भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति, भारत सरकार के गृह विभाग में हिन्दी
सलाहकार और आकाशवाणी के निदेशक के रूप में कार्य किया। सन् 1962 में भागलपुर
विश्वविद्यालय ने इन्हें डी० लिट की मानद उपाधि प्रदान की। सन् 1972 ई० में इनकी
काव्य-रचना 'उर्वशी' पर इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हिन्दी-साहित्य
का यह महान् साहित्यकार 24 अप्रैल सन् 1974 ई० को हमेशा के लिए हमें त्यागकर ब्रह्मतत्व में
विलीन हो गया।
कृतियाँ या रचनाएँ- कवि दिनकर की गद्य-पद्य रचनाओं का विवरण निम्नलिखित है
(1) दर्शन एवं संस्कृति- 'धर्म', 'भारतीय संस्कृति की एकता', 'संस्कृति के चार अध्याय'।
(2) निबन्ध संग्रह- 'अर्द्धनारीश्वर', 'वट-पीपल', 'उजली आग', 'मिट्टी की ओर' 'रेती के फूल' आदि।
(3) आलोचना ग्रन्थ- शुद्ध कविता की खोज! 
(4) यात्रा साहित्य- 'देश-विदेश'।
 (5) बाल-साहित्य- 'मिर्च का मजा', 'सूरज का ब्याह' आदि।
(6) काव्य ग्रन्थ- 'रेणुका', 'हुंकार', 'रसवन्ती', 'कुरुक्षेत्र', 'सामधेनी', 'प्रण-भंग' (प्रथम-काव्य रचना)
'उर्वशी' (महाकाव्य), 'रश्मिरथी' (खण्डकाव्य) परशुराम की प्रतीक्षा (खण्डकाव्य) आदि।

साहित्य में स्थान- शुक्ल युग में क्रान्ति बिगुल बजाने वाले साहित्यकार एवं कवि
श्रीरामधारी सिंह 'दिनकर' श्रेष्ठ चिन्तक, आलोचक, निबन्धकार और कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं
लेकिन राष्ट्रीय भावनाओं से संचालित इनकी कृतियाँ हिन्दी-साहित्य की अमूल्य निधि हैं, जो
इन्हें हिन्दी साहित्याकाश का दिनकर सिद्ध करती हैं।

डा० राजेन्द्र प्रसाद जीवन परिचय हिन्दी

डा० राजेन्द्र प्रसाद 

जीवन परिचय- देश रत्न, प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद का जन्म बिहार राज्य के छपरा जिले के जीरादेई नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता श्री महादेव सहाय गाँव के सम्पन्न एवं प्रतिष्ठित कृषक परिवारों में गिने जाते हैं। इन्होंने कलकत्ता (कोलकाता) विश्वविद्यालय से एम०ए०, एल०एल०बी० की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। ये प्रतिभासम्पन्न और मेधावी छात्र रहे तथा परीक्षा में प्रथम आते थे। इन्होंने कुछ समय तक मुजफ्फरपुर कॉलेज में अध्यापन कार्य करने के पश्चात् ये पटना और कलकत्ता में वकील रहे। इनका लगाव छात्र जीवन से राष्ट्र सेवा की ओर था। सन् 1917 ई० में गांधी जी के आदर्शों और सिद्धान्तों से प्रभावित होकर इन्होंने चम्पारन के आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया और वकालत छोड़कर पूर्ण रूप में राष्ट्रीय स्वतन्त्रता-संग्राम में कूद पड़े। अनेक बार जेल की यातनाएँ भी इन्होंने भोगी। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने विदेश जाकर भारत के पक्ष को विश्व के सामने रखा। ये तीन बार 'अखिल भारतीय कांग्रेस के सभापति तथा भारत के संविधान का निर्माण करने वाली सभा के सभापति चुने गये।
  राजनीतिक जीवन के साथ ही बंगाल और बिहार में बाढ़ और भूकम्प के समय की गई इनकी सेवाएँ सदा स्मरण रही। 'सादा जीवन उच्च विचार' इनके जीवन का ध्येय वाक्य एवं आदर्श रहा। इनकी प्रतिभा, कर्त्तव्यनिष्ठा,ईमानदारी और निष्पक्षता से प्रभावित होकर ही इनको भारत गणराज्य का प्रथम राष्ट्रपति बनाया गया। इस पद पर ये सन् 1952 ई० से सन् 1962 ई० तक सुशोभित रहे। भारत सरकार ने इनकी सेवाओं से प्रभावित होकर इन्हें सन् 1962 ई० में 'भारत रत्न' से अलंकृत किया। जीवन भर राष्ट्र की निःस्वार्थ सेवा करते हुए ये 28 फरवरी, सन् 1963 ई० को दिवंगत हो गये।
         कृतियाँ या रचनाएँ- डॉ० राजेन्द्र प्रसाद की रचनाओं का विवरण निम्नलिखित है
(1) चम्पारन में महात्मा गाँधी, 
(2) बाप के कदमों में, 
(3) मेरी आत्मकथा,
(4) मेरे यूरोप के अनुभव, 
(5) शिक्षा और संस्कृति,
(6) भारतीय शिक्षा, 
(7) गाँधी जी की देन, 
(8) साहित्य, 
(9) संस्कृति का अध्ययन, 
(10) खादी का अर्थशास्त्र आदि।
    साहित्य में स्थान- डॉ० राजेन्द्र प्रसाद सुलझे हुए राजनेता होने के साथ-साथ उच्च कोटि
के विचारक, साहित्य-साधक और कुशल वक्ता थे।
वे 'सादी भाषा और गहन विचारक' के रूप में सदैव स्मरणीय रहेंगे। इनकी -हिन्दी की आत्मकथा
पुस्तक 'मेरी आत्मकथा' को आज उच्चस्तरीय स्थान प्राप्त है।

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जीवन परिचय हिन्दी

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी


जीवन परिचय- शुक्ल-युग के प्रवर्तक, श्रेष्ठ निबन्धकार और आलोचक श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
का जन्म सन् 1894 ई० में मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के खैरागढ़ नामक स्थान पर हुआ था।
इनके पिता श्री उमराव बख्शी तथा बाबा पुन्नालाल बख्शी साहित्य-प्रेमी और कवि थे। माता भी
साहित्य प्रेमी थी। परिवार के साहित्यिक वातावरण का प्रभाव इनके मन पर भी पड़ा और ये
विद्यार्थी जीवन से ही कविताएँ लिखने लगे। बी०ए० उत्तीर्ण करने के बाद बख्शी जी ने
साहित्य-सेवा को अपना लक्ष्य बना लिया
और वे कविताएँ और कहानियाँ लिखने लगे। आचार्य द्विवेदी जी बख्शी जी __की रचनाओं व
योग्यताओं से इतने अधिक प्रभावित हुए थे कि अपने बाद
उन्होंने 'सरस्वती' पत्रिका की बागडोर इन्हीं को सौंप दी। द्विवेदी जी के बाद सन् 1920 से लेकर
1927 ई० तक इन्होंने कुशलतापूर्वक 'सरस्वती' पत्रिका का सम्पादन कार्य किया। खैरागढ़ के
हाईस्कूल में अध्यापन कार्य करने के पश्चात् इन्होंने पुनः 'सरस्वती' का सम्पादन कार्य किया।
सन् 1971 ई० में 77 वर्ष की आयु में ये साहित्य सेवा करते हुए गोलोक वासी हो गये|
 कृतियाँ या रचनाएँ- बख्शी जी की रचनाओं का विवरण निम्नवत् हैं
(1) निबन्ध-संग्रह- 'पंचपात्र', 'पद्मवन', 'तीर्थ रेणु', 'प्रबन्धपारिजात', 'कुछ बिखरे पन्ने',
'मकरन्द बिन्दु', 'यात्री', 'तुम्हारे लिए', 'तीर्थ-सलिल' आदि।
(2) आलोचना ग्रन्थ- 'हिन्दी-साहित्य विमर्श', 'विश्व-साहित्य', 'हिन्दी-उपन्यास साहित्य',
'हिन्दी कहानी साहित्य', 'साहित्य-शिक्षा' आदि।
(3) कहानी-संग्रह- 'झलमला', 'अञ्जलि'। 
(4) काव्य-संग्रह- 'शतदल', 'अश्रुदल'।
(5) अनूदित रचनाएँ- जर्मनी के मौरिस मेटरलिंक के दो नाटकप्रायश्चित, उन्मुक्ति का
बन्धन।
(6) अनूदित ग्रन्थ- 'सरस्वती', 'छाया'।

साहित्य में स्थान- बख्शी जी भावुक कवि, श्रेष्ठ निबन्धकार, निष्पक्ष आलोचक, कुशल
पत्रकार एवं कहानीकार हैं। आलोचनाएँ और निबन्ध के क्षेत्र में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
विश्व साहित्य में इनकी गहरी पैठ है। अपने ललित निबन्धों के लिए ये सदैव स्मरण किये जाएँगे।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जीवन परिचय हिन्दी

 आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

जीवन परिचय- शुक्ल-युग के प्रवर्तक एवं श्रेष्ठ लेखक, समीक्षक एवं आलोचक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
का जन्म सन् 1884 ई० में बस्ती जिले के अगोना नामक ग्राम के प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। इनके पिता
श्री चन्द्रबली शुक्ल मिर्जापुर में कानूनगो थे और माता अत्यन्त विदुषी और धार्मिक स्त्री थी। इनकी प्रारम्भिक
शिक्षा पिता के पास राठ तहसील में हुई थी, तत्पश्चात् मिशन स्कूल से दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। गणित में
कमजोर होने के कारण ये आगे नहीं पढ़ सके। इन्होंने एफ०ए० (इण्टरमीडिएट) की शिक्षा इलाहाबाद से ली
किन्तु परीक्षा से पूर्व ही विद्यालय छूट गया। इन्होंने मिर्जापुर के न्यायालय में नौकरी आरम्भ की, परन्तु यह
नौकरी इनके स्वभाव के अनुकूल नहीं थी, अतः ये मिर्जापुर के मिशन स्कूल में चित्रकला के अध्यापक हो गये।
अध्यापन-कार्य करते हुए इन्होंने अनेक कहानी, कविता, निबन्ध आदि । की रचना की। इनकी
विद्वता से प्रभावित होकर इन्हें 'हिन्दी शब्द सागर' के सम्पादन कार्य में सहयोग देने के लिए
बाबू श्याम सुन्दर दास जी द्वारा 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' में ससम्मान बुलवाया गया।
इन्होंने 19 वर्ष तक 'काशी नागरी प्रचारिणी' पत्रिका का सम्पादन भी किया। कुछ समय
पश्चात् इनकी नियुक्ति काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक के रूप में
हो गई। बाबू श्यामसुन्दर दास के अवकाश प्राप्त करने के बाद ये हिन्दी विभाग के अध्यक्ष भी
हो गये। इस महान् प्रतिष्ठित युग प्रवर्तक साहित्यकार का सन् 1941 ई० में देहावसान हो गया।
कृतित्व/रचनाएँ- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की रचनाओं का विवरण निम्नलिखित हैं
(1) निबन्ध- 'चिन्तामणि' (भाग-एक, दो), 'विचारवीथी'। 
(2) आलोचना ग्रन्थ- 'रसमीमांसा' 'त्रिवेणी', 'सूरदास'। 
(3) इतिहास ग्रन्थ- हिन्दी-साहित्य का इतिहास।
 (4) सम्पादित ग्रन्थ- 'जायसी ग्रन्थावली' 'तुलसीग्रन्थावली', 'भ्रमर गीत सार', 'हिन्दी
शब्द-सागर', 'काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका'।
(5) कहानी- ग्यारह वर्ष का समय।
(6) अनूदित ग्रन्थ- 'मेगस्थनीज का भारतवर्षीय विवरण', 'आदर्श - जीवन', 'कल्याण का
आनन्द', 'विश्व-प्रबन्ध'।
(7) काव्य रचना- 'अभिमन्यु-वध', 'बुद्ध चरित' आदि।
साहित्य में स्थान- हिन्दी निबन्ध को कोई नई पहचान देकर उसे प्रतिष्ठित करने वाले शुक्ल जी हिन्दी-साहित्य के मूर्धन्य आलोचक, श्रेष्ठ निबन्धकार, निष्पक्ष इतिहासकार एवं युग-प्रवर्तक साहित्यकार थे। वे हृदय से कवि, मस्तिष्क से आलोचक और जीवन से अध्यापक थे। हिन्दी साहित्य में इनका मूर्धन्य स्थान है। इन्हीं के समकालीन काल को 'शुक्ल-युग' के नाम से जाना जाता है।

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